वो मिज़ाज पूछ लेते हैं सलाम कर के देखो
जो कलाम हो कुछ इस में तो कलाम कर के देखो
कई रिंद-शैख़ ऐसे भी हैं दुख़्त-ए-रज़ पे शैदा
जो हलाल कर के रख देंगे हराम कर के देखो
तुम इसी लिए बने हो कि बनाओ बातें वाइज़
किसी काम के अगर हो तो वो काम कर के देखो
ये हमें भी देखना है तुम्हें क्या कहेगी दुनिया
जो करम है ख़ास हम पर उसे आम कर के देखो
जो नसीब आज़माना है तो रात कैसी दिन क्या
कहीं सुब्ह कर के देखो कहीं शाम कर के देखो
ग़म-ए-ज़ीस्त को न देखो कि फ़रेब-ए-ज़िंदगी है
ये मसर्रतों के अरमाँ तो तमाम कर के देखो
कोई जिंस-ए-दिल का शायद तुम्हें मिल भी जाए गाहक
कहीं ले के जाओ 'नातिक़' कभी दाम कर के देखो
ग़ज़ल
वो मिज़ाज पूछ लेते हैं सलाम कर के देखो
नातिक़ गुलावठी