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वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा | शाही शायरी
wo mizaj dil ke badal gae ki wo karobar nahin raha

ग़ज़ल

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

सुलैमान अहमद मानी

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वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा
मिरी जान तेरे फ़िराक़ में कोई सोगवार नहीं रहा

तिरी आरज़ू कहीं खो गई मिरी जुस्तजू-ए-फ़ुज़ूल में
मुझे ऐन वक़्त विसाल में तिरा इंतिज़ार नहीं रहा

न ख़िरद रही न जुनूँ बचा दिल-ए-पुर-ग़ुरूर ये क्या हुआ
तुझे अपने आप पे ख़ुद भी अब ज़रा ए'तिबार नहीं है

दम-ए-अव्वलीं के वो सिलसिले वो तमाम कार-ए-जहाँ मिरे
रहे ना-तमाम कि राह में दम-ए-मुस्तआ'र नहीं रहा

तिरी बज़्म जो ये सजी नई यहाँ सारा हुस्न है अजनबी
कोई चश्म अब नहीं सुर्मगीं कोई गुल-एज़ार नहीं रहा

यहाँ मा'बदों के हुजूम में न बचा है कोई भी मय-कदा
किसे शहर में कहें हम-नवा कोई बादा-ख़्वार नहीं रहा