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वो मेरे वजूद का सिला है | शाही शायरी
wo mere wajud ka sila hai

ग़ज़ल

वो मेरे वजूद का सिला है

जावेद मंज़र

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वो मेरे वजूद का सिला है
या रूह के वास्ते रिदा है

किस दिल से लहू की फ़स्ल बोएँ
जब ख़ून ही ख़ून से जुदा है

हर शख़्स है दुश्मनों की ज़द पर
अब मुझ सा कोई कहाँ रहा है

हर सम्त उदासियाँ मिली हैं
हालात से बस यही गिला है

चेहरे पे मसर्रतें सजाए
जो भी ग़मों में पल रहा है

'मंज़र' इसे जानता मैं कैसे
जो मुझ को कभी नहीं मिला है