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वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया | शाही शायरी
wo mere shisha-e-dil dil par KHarash chhoD gaya

ग़ज़ल

वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया

हीरानंद सोज़

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वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया
दयार-ए-रूह में इक इर्तिआश छोड़ गया

क़दम क़दम पे हुआ जब मुनाफ़िक़त का शिकार
तो अपने शहर की वो बूद-ओ-बाश छोड़ गया

वहाँ से मंज़िल-ए-इरफ़ान-ए-ज़ात दूर न थी
वो जिस मक़ाम पे उस की तलाश छोड़ गया

वो शख़्स आप ही क़ातिल था आप ही मक़्तूल
जहाँ जहाँ भी गया अपनी लाश छोड़ गया

कमाल दर्जा था उस में शुऊर-ए-तीशा-गरी
मिरे वजूद को वो पाश पाश छोड़ गया

था उस के दस्त-ए-हुनर में भी आज़री का कमाल
मगर वो अपना ही बुत नातराश छोड़ गया