वो मेरे शहर में आया हुआ है
कड़कती धूप में साया हुआ है
तुम्हारे प्यार में टूटा हुआ दिल
किसी के हुस्न पे आया हुआ है
दिल-ए-बर्बाद को तेरे सबब से
नई उल्फ़त में उलझाया हुआ है
मोहब्बत ने मिरे से तुंद-ख़ू को
सर-ए-बाज़ार खिंचवाया हुआ है
मुझे मिलने को उस ने तंग कुर्ता
ब-तौर-ए-ख़ास सिलवाया हुआ है
नदामत सख़्त है पर है ख़ुशी भी
उसे ख़ल्वत में बुलवाया हुआ है
ग़ज़ल
वो मेरे शहर में आया हुआ है
आरिफ़ इशतियाक़