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वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा | शाही शायरी
wo mere samne malbus kya badalne laga

ग़ज़ल

वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा

सरवत हुसैन

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वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
निगार ख़ाना-ए-अब्र-ओ-हवा बदलने लगा

तह-ए-ज़मीन किसी अज़दहे ने जुम्बिश की
बिसात-ए-ख़ाक पे मंज़र मिरा बदलने लगा

ये कौन उतरा पए-गश्त अपनी मसनद से
और इंतिज़ाम-ए-मकान ओ सिरा बदलने लगा

हुआ है कौन नुमूदार तीन सम्तों से
कि अंदरूँ का जज़ीरा-नुमा बदलने लगा

ये कैसे दिन हैं हमारी ज़मीन पर 'सरवत'
गुलों का रंग नमक का मज़ा बदलने लगा