वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
कि आसमाँ के फ़रिश्तों को प्यार आता था
उसे गुलाब की पत्ती ने क़त्ल कर डाला
वो सब की राहों में काँटे बहुत बिछाता था
तुम्हारे साथ निगाहों का कारोबार गया
तुम्हारे ब'अद निगाहों में कौन आता था
सफ़र के साथ सफ़र के नए मसाइल थे
घरों का ज़िक्र तो रस्ते में छूट जाता था
ग़ज़ल
वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
वसीम बरेलवी