वो लोग तो आँखों से भी देखा नहीं करते
जो दिल के दरीचों को कभी वा नहीं करते
ऐसी ही कशाकश में उलट जाती है दुनिया
सँभले न अगर दिल तो सँभाला नहीं करते
रखते हैं मोहब्बत को तग़ाफ़ुल में छुपा कर
पर्वा ही तो करते हैं जो पर्वा नहीं करते
होगा कोई हम जैसा कहाँ हिज्र-गज़ीदा
मातम भी तो तन्हाई का तन्हा नहीं करते
इस चाक-गरेबानी पे समझाने लगे सब
धागे भी ये कहते हैं कि उलझा नहीं करते
कहते हैं सभी सुस्त मगर आप कहें क्यूँ
कह दें जो कभी आप तो हम क्या नहीं करते
'अख़्तर' को बुरा कहते कोई बात नहीं थी
'ग़ालिब' को बुरा कहते हो अच्छा नहीं करते
ग़ज़ल
वो लोग तो आँखों से भी देखा नहीं करते
जुनैद अख़्तर