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वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं | शाही शायरी
wo kis pyar se kosne de rahe hain

ग़ज़ल

वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं

ज़हीर देहलवी

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वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं
बलाएँ अदावत की हम ले रहे हैं

पड़े हैं वो इशरत-कदे आज वीराँ
जहाँ यार लोगों के जलसे रहे हैं

बुरे और अच्छों के हैं ज़िक्र बाक़ी
बुरे ही रहे हैं न अच्छे रहे हैं

पयामी से कहते हैं किस ने कहा था
वो क्यूँ रात भर यूँ तड़पते रहे हैं

ज़बाँ थक गई कोसने देते देते
बस अब ख़ैर से चुटकियाँ ले रहे हैं

नए दाग़ खाए हैं क्या आज दिल पर
ये गुल तो हमेशा ही खिलते रहे हैं

जहाँ मिल के बैठे हैं दो-चार हम-सिन
हमारे तुम्हारे ही चर्चे रहे हैं

'ज़हीर' आह दिन ज़िंदगानी के अपने
बहुत जा चुके और थोड़े रहे हैं