वो ख़ुद-परस्त है और ख़ुद-शनास मैं भी नहीं
फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-वहम-ओ-क़यास मैं भी नहीं
फ़ज़ा-ए-शहर-ए-तलब है अना-गुज़ीदा बहुत
अदा-शनास रह-ए-इल्तिमास मैं भी नहीं
मैं क्यूँ कहूँ कि ज़माना नहीं है रास मुझे
मैं देखता हूँ ज़माने को रास मैं भी नहीं
ये वाक़िआ कि तुझे खल रही है तन्हाई
ये हादसा कि तिरे आस-पास मैं भी नहीं
हुआ करे जो है 'ख़ावर' फ़ज़ा ख़िलाफ़ मिरे
असीर-ए-हल्क़ा-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास मैं भी नहीं

ग़ज़ल
वो ख़ुद-परस्त है और ख़ुद-शनास मैं भी नहीं
ख़ावर रिज़वी