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वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे | शाही शायरी
wo KHud apna daman baDhane lage

ग़ज़ल

वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

फ़ारूक़ बख़्शी

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वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे
चलो आज आँसू ठिकाने लगे

हमारा बुरा वक़्त जब टल गया
फिर अहबाब मिलने-मिलाने लगे

तिरी बरहमी में भी जान-ए-वफ़ा
नवाज़िश के अंदाज़ आने लगे

मदावा-ए-ग़म कुछ तो करना ही था
मुसीबत पड़ी गुनगुनाने लगे

मज़ा दे गया यार दौर-ए-फ़िराक़
हमें तो ये दिन भी सुहाने लगे

मोहब्बत से तौफ़ीक़-ए-इज़हार तक
पहुँचते पहुँचते ज़माने लगे

ये ग़ुंचे भी 'फ़ारूक़' क्या ख़ूब हैं
खुली आँख और मुस्कुराने लगे