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वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है | शाही शायरी
wo kaun hai jis ki wahshat par sunte hain ki jangal rota hai

ग़ज़ल

वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है

शाज़ तमकनत

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वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है
वीराने में अक्सर रात गए इक शख़्स है पागल रोता है

फिर सन से कहीं पुरवाई चली खिलते नहीं देखी दिल की कली
ये झूट है बरखा होती है ये सच है कि बादल रोता है

है उस का सरापा दीदा-ए-तर दुनिया को मगर क्या इस की ख़बर
सब के लिए आँखें हँसती हैं मेरे लिए काजल रोता है

वो किस के लिए सिंघार करे चंदन सा बदन यूँ रूप भरे
जब माँग झका-झक होती है आईना झला-झल रोता है

बनती नहीं दिल से 'शाज़' अपनी ये दोस्त है या दुश्मन कोई
हम हैं कि मुसलसल हँसते हैं वो है कि मुसलसल रोता है