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वो कहाँ मुझ पे जफ़ा करता था | शाही शायरी
wo kahan mujh pe jafa karta tha

ग़ज़ल

वो कहाँ मुझ पे जफ़ा करता था

क़य्यूम नज़र

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वो कहाँ मुझ पे जफ़ा करता था
जो मुक़द्दर था मिला करता था

आज शरमाता है सूरज उस से
वो जो तारों से हया करता था

सोचता हूँ तो हँसी आती है
सामने उस के मैं क्या करता था

मैं पड़ा रहता था उफ़्तादगी से
जादा-ए-शौक़ चला करता था

याद आया है कि ख़ुश-बाशी को
ग़म का अफ़्शुर्दा पिया करता था

गर्द-ए-रह बन के जो यूँ बैठा हूँ
सूरत-ए-शोला उठा करता था

दिल से इक हूक भी अब उठती नहीं
दिल कि हंगामा बपा करता था

मंज़िलों तक है कड़ी धूप खड़ी
मैं भी साए में चला करता था

अब वो मरने की उड़ाते हैं ख़बर
जिन पे मरने को जिया करता था

वो भी मिलते थे कभी मुझ से 'नज़र'
कभी ऐसा भी हुआ करता था