वो जो वीरान फिरा करता है 
उस के सर में कोई सहरा होगा 
तुझ से दिल तेरे परस्तारों का 
टूटते टूटते टूटा होगा 
झुक के जो आप से मिलता होगा 
उस का क़द आप से ऊँचा होगा 
वो जो मरने पे तुला है 'अख़्तर' 
उस ने जी कर भी तो देखा होगा
        ग़ज़ल
वो जो वीरान फिरा करता है
वकील अख़्तर

