EN اردو
वो जो मुझ से मिलता नहीं | शाही शायरी
wo jo mujhse milta nahin

ग़ज़ल

वो जो मुझ से मिलता नहीं

सग़ीर अालम

;

वो जो मुझ से मिलता नहीं
शायद मुझ को समझा नहीं

उस का ग़म है मेरा ग़म
मेरा ग़म क्यूँ उस का नहीं

अब तो ऐसा लगता है
सच भी जैसे सच्चा नहीं

उस को कैसे भूलूँ मैं
अब ये मेरे बस का नहीं

अब तो सब ही करते हैं
प्यार किसी को होता नहीं

मुझ को ज़िंदा रखता है
वो जो मुझ पे मरता नहीं