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वो जो मुब्तला है मोहब्बतों के अज़ाब में | शाही शायरी
wo jo mubtala hai mohabbaton ke azab mein

ग़ज़ल

वो जो मुब्तला है मोहब्बतों के अज़ाब में

सय्यद मुबारक शाह

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वो जो मुब्तला है मोहब्बतों के अज़ाब में
कोई फूटता हुआ आबला है हुबाब में

मिरा इश्क़ शर्त-ए-विसाल से रहे मुत्तसिल
नहीं देखना मुझे ख़्वाब-ए-शब शब-ए-ख़्वाब में

जो कशीद करने का हौसला है तो कीजिए
कि हज़ार तरह की राहतें हैं अज़ाब में

ये तवाफ़-ए-काबा ये बोसा संग-ए-सियाह का
ये तलाश अब भी है पत्थरों के हिजाब में

बड़ी लज़्ज़तें हैं गुनाह में जो न कीजिए
जो न पीजिए तो अजब नशा है शराब में

सभी उज़्र-हा-ए-गुनाह जब हुए मुस्तरद
तो दलील कैसी दिफ़ा-ए-कार-ए-सवाब में