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वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे | शाही शायरी
wo jo kuchh kuchh nigah milane lage

ग़ज़ल

वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे

ज़हीर देहलवी

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वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे
हम हर इक से नज़र चुराने लगे

देखिए क्या हो जौर का अंजाम
वो मिरे हौसले बढ़ाने लगे

ये वो काफ़िर है इश्क़-ए-ख़ाना-ख़राब
तुम मिरे ग़म-कदे में आने लगे

काविशों में भी अब मज़ा न रहा
हर किसी को वो जब सताने लगे

मौत आई 'ज़हीर' कब हम को
जब मोहब्बत के लुत्फ़ आने लगे