वो जो इक फ़र्त-ए-शादमानी है
हिज्र से वस्ल की कहानी है
वस्ल उस का कराँ से ता-ब-कराँ
बे-करानी सी बे-करानी है
कोई आतिश-कदा है उस का बदन
आग है और जावेदानी है
उस की आँखें कि ख़्वाब-ए-हैरत हैं
कैफ़ियत उन में दास्तानी है
होंट उस के हैं चश्मा-ए-हैवाँ
उन से पी लो तो जावेदानी है
उस की क़ामत है रश्क-ए-सर्व-ए-इरम
चाल बस ख़्वाब की रवानी है
जिस जगह पर खिला है नाफ़ का फूल
वो तो इक बाग़-ए-ला-मकानी है
कोई जादू है तू कि जान-ए-'नदीम'
हवस-अंगेज़ सी कहानी है
ग़ज़ल
वो जो इक फ़र्त-ए-शादमानी है
कामरान नदीम