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वो जो इक फ़र्त-ए-शादमानी है | शाही शायरी
wo jo ek fart-e-shadmani hai

ग़ज़ल

वो जो इक फ़र्त-ए-शादमानी है

कामरान नदीम

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वो जो इक फ़र्त-ए-शादमानी है
हिज्र से वस्ल की कहानी है

वस्ल उस का कराँ से ता-ब-कराँ
बे-करानी सी बे-करानी है

कोई आतिश-कदा है उस का बदन
आग है और जावेदानी है

उस की आँखें कि ख़्वाब-ए-हैरत हैं
कैफ़ियत उन में दास्तानी है

होंट उस के हैं चश्मा-ए-हैवाँ
उन से पी लो तो जावेदानी है

उस की क़ामत है रश्क-ए-सर्व-ए-इरम
चाल बस ख़्वाब की रवानी है

जिस जगह पर खिला है नाफ़ का फूल
वो तो इक बाग़-ए-ला-मकानी है

कोई जादू है तू कि जान-ए-'नदीम'
हवस-अंगेज़ सी कहानी है