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वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से | शाही शायरी
wo jo ek chehra damak raha hai jamal se

ग़ज़ल

वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से

यशब तमन्ना

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वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से
उसे मिल रही है ख़ुशी किसी के ख़याल से

मैं ने सिर्फ़ एक ही दाएरे में सफ़र किया
कभी बे-नियाज़ भी कर मुझे मह-ओ-साल से

कभी हँस के ख़ुद ही गले से उस को लगा लिया
कभी रो दिए हैं लिपट के ख़ुद ही मलाल से

तुझे क्या ख़बर कि वो कौन है सर-ए-रहगुज़र
कभी सरसरी न गुज़र किसी के सवाल से

वो जो मुस्कुरा के गुज़र रहा है क़रीब से
उसे आश्नाई ज़रूर है मेरे हाल से

मुझे आसरा भी नहीं किसी की दुआओं का
मुझे ख़ौफ़ आता है यूँ भी वक़्त-ए-ज़वाल से

'यशब' अपने आप से मिल के कितना भला लगा
मुझे फ़ुर्सतें ही नहीं मिलीं कई साल से