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वो जब तक अंजुमन में जल्वा फ़रमाने नहीं आते | शाही शायरी
wo jab tak anjuman mein jalwa farmane nahin aate

ग़ज़ल

वो जब तक अंजुमन में जल्वा फ़रमाने नहीं आते

शेर सिंह नाज़ देहलवी

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वो जब तक अंजुमन में जल्वा फ़रमाने नहीं आते
सुराही रक़्स में गर्दिश में पैमाने नहीं आते

शरीक-ए-दर्द बन कर अपने बेगाने नहीं आते
मय-ए-इशरत जो पीते हैं वो ग़म खाने नहीं आते

लिपट कर शम्अ की लौ से लगी दिल की बुझाते हैं
पराई आग में जलने को परवाने नहीं आते

उड़ाते ही फिरेंगे उम्र भर वो ख़ाक सहरा की
तिरी ज़ुल्फ़ों के साए में जो दीवाने नहीं आते

जो अपनी आन पर ऐ 'नाज़' अपनी जान देते थे
ज़माने में नज़र अब ऐसे दीवाने नहीं आते