वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या
कोई मेहर नहीं कोई क़हर नहीं फिर सच्चा शेर सुनाएँ क्या
इक हिज्र जो हम को लाहक़ है ता-देर उसे दोहराएँ क्या
वो ज़हर जो दिल में उतार लिया फिर उस के नाज़ उठाएँ क्या
फिर आँखें लहू से ख़ाली हैं ये शमएँ बुझाने वाली हैं
हम ख़ुद भी किसी के सवाली हैं इस बात पे हम शरमाएँ क्या
इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई
जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या
हम नग़्मा-सरा कुछ ग़ज़लों की हम सूरत-गर कुछ ख़्वाबों के
बे-जज़्बा-ए-शौक़ सुनाएँ क्या कोई ख़्वाब न हो तो बताएँ क्या
ग़ज़ल
वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या
अतहर नफ़ीस