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वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे | शाही शायरी
wo husn ko jalwa-gar karenge

ग़ज़ल

वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे

सूफ़ी तबस्सुम

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वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
आराइश-ए-बाम-ओ-दर करेंगे

हर गोशे में होगी ख़ुद-नुमाई
हर ज़र्रे को रहगुज़र करेंगे

हँस हँस के करेंगे चारासाज़ी
सामान-ए-दिल-ओ-नज़र करेंगे

हम भी सर-ए-राह मुंतज़िर हैं
देखें कब इधर नज़र करेंगे

अफ़्साना-ए-ग़म तवील है दोस्त
इस बात को मुख़्तसर करेंगे

है शाम-ए-फ़िराक़ सख़्त तारीक
इस शाम की अब सहर करेंगे

अफ़्सुर्दा हैं ज़िंदगी के तेवर
कब तक यूँही हम बसर करेंगे

आएगा 'तबस्सुम' उन लबों पर
आँसू भी कभी असर करेंगे