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वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद | शाही शायरी
wo har maqam se pahle wo har maqam ke baad

ग़ज़ल

वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद

क़ाबिल अजमेरी

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वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद
सहर थी शाम से पहले सहर है शाम के बाद

हर इंक़िलाब मुबारक हर इंक़िलाब अज़ाब
शिकस्त-ए-जाम से पहले शिकस्त-ए-जाम के बाद

मुझी पे इतनी तवज्जोह मुझी से इतना गुरेज़
मिरे सलाम से पहले मिरे सलाम के बाद

चराग़-ए-बज़्म-ए-सितम हैं हमारा हाल न पूछ
जले थे शाम से पहले बुझे हैं शाम के बाद

ये रात कुछ भी नहीं थी ये रात सब कुछ है
तुलू-ए-जाम से पहले तुलू-ए-जाम के बाद

वही ज़बाँ वही बातें मगर है कितना फ़र्क़
तुम्हारे नाम से पहले तुम्हारे नाम के बाद

हयात गिर्या-ए-शबनम हयात रक़्स-ए-शरर
तिरे पयाम से पहले तिरे पयाम के बाद

ये तर्ज़-ए-फ़िक्र ये रंग-ए-सुख़न कहाँ 'क़ाबिल'
तिरे कलाम से पहले तिरे कलाम के बाद