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वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं | शाही शायरी
wo hamein rah mein mil jaen zaruri to nahin

ग़ज़ल

वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं

ज़ाहिदा ज़ैदी

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वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं
ख़ुद-ब-ख़ुद फ़ासले मिट जाएँ ज़रूरी तो नहीं

चाँद चेहरे कि हैं गुम वक़्त के सन्नाटे में
हम मगर उन को भुला पाएँ ज़रूरी तो नहीं

जिन से बिछड़े थे तो तारीक थी दुनिया सारी
हम उन्हें ढूँड के फिर लाएँ ज़रूरी तो नहीं

तिश्नगी हद से सिवा और सफ़र जारी है
पर सराबों से बहल जाएँ ज़रूरी तो नहीं

ज़िंदगी तू ने तो सच है कि वफ़ा हम से न की
हम मगर ख़ुद तुझे ठुकराएँ ज़रूरी तो नहीं

जू-ए-एहसास में लर्ज़ां ये गुरेज़ाँ लम्हात
नग़्मा-ए-दर्द में ढल जाएँ ज़रूरी तो नहीं

ये तो सच है कि है इक उम्र से बस एक तलाश
हम मगर अपना पता पाएँ ज़रूरी तो नहीं