वो गुल-बदन है सरापा गुलाब जैसा है
जहान-ए-हुस्न में वो आफ़्ताब जैसा है
हज़ारों रंग समेटे हुए है आँखों में
वो शाइ'री की मुकम्मल किताब जैसा है
सँवार देता है वो सारी मुश्किलें मेरी
हर-इक सवाल ही उस का जवाब जैसा है
वो रू-ब-रू हो तो बस देखते रहो उस को
कि उस को देखना कार-ए-सवाब जैसा है
ज़माना कुछ नहीं समझेगा बस पिए जाओ
कि ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है
किसी मक़ाम पे ठहरा है और न ठहरेगा
कि दिल का हाल भी ख़ाना-ख़राब जैसा है
हर एक लफ़्ज़ है 'सागर' का क़ीमती मोती
वो रख-रखाव में अब भी नवाब जैसा है

ग़ज़ल
वो गुल-बदन है सरापा गुलाब जैसा है
रूप साग़र