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वो गुल-बदन है सरापा गुलाब जैसा है | शाही शायरी
wo gul-badan hai sarapa gulab jaisa hai

ग़ज़ल

वो गुल-बदन है सरापा गुलाब जैसा है

रूप साग़र

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वो गुल-बदन है सरापा गुलाब जैसा है
जहान-ए-हुस्न में वो आफ़्ताब जैसा है

हज़ारों रंग समेटे हुए है आँखों में
वो शाइ'री की मुकम्मल किताब जैसा है

सँवार देता है वो सारी मुश्किलें मेरी
हर-इक सवाल ही उस का जवाब जैसा है

वो रू-ब-रू हो तो बस देखते रहो उस को
कि उस को देखना कार-ए-सवाब जैसा है

ज़माना कुछ नहीं समझेगा बस पिए जाओ
कि ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है

किसी मक़ाम पे ठहरा है और न ठहरेगा
कि दिल का हाल भी ख़ाना-ख़राब जैसा है

हर एक लफ़्ज़ है 'सागर' का क़ीमती मोती
वो रख-रखाव में अब भी नवाब जैसा है