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वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे | शाही शायरी
wo din gae ki chhup ke sar-e-baam aaenge

ग़ज़ल

वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे

वज़ीर आग़ा

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वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे
आना हुआ तो अब वो सर-ए-आम आएँगे

सोचा न था कि अब्र-ए-सियह-पोश से कभी
कौंदे तेरे बदन के मिरे नाम आएँगे

उस नख़्ल-ए-ना-मुराद से जो पात झड़ गए
अंधी ख़ुनुक हवाओं के अब काम आएँगे

आँसू सितारे ओस के दाने सफ़ेद फूल
सब मेरे ग़म-गुसार सर-ए-शाम आएँगे

रख तू इन्हें बचा के किसी और के लिए
ये क़ौल ये क़रार तिरे काम आएँगे

लौटे अगर सफ़र से कभी हम तो डर नहीं
सूरत बदल के आएँगे बे-नाम आएँगे