वो देख कर न रुका और गुज़र गए हम भी
दुआ-ए-शब की तरह बे-असर गए हम भी
समाअ'तों के जज़ीरे तलक रसाई न थी
वो बे-ख़बर ही रहा बे-समर गए हम भी
यही कहेंगे कि इक ख़ौफ़ था बुलंदी का
किसी के बाम-ए-नज़र से उतर गए हम भी
मिला वो ज़ोर-ए-तसव्वुर सुबुक-इरादा हुए
मुसीबत आने से पहले ही डर गए हम भी
शनावरी पे कहीं हर्फ़ ही न आ जाए
अगर तराश के दरिया गुज़र गए हम भी
ख़ुदा भी तो कभी यकसानियत से उकताए
कमाल कौन सा होगा जो मर गए हम भी
सदा-ए-ख़्वाब तो थे ऐसे चूर चूर हुए
ग़ुबार बन के फ़ज़ा में बिखर गए हम भी

ग़ज़ल
वो देख कर न रुका और गुज़र गए हम भी
शाह नवाज़ ज़ैदी