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वो देख कर न रुका और गुज़र गए हम भी | शाही शायरी
wo dekh kar na ruka aur guzar gae hum bhi

ग़ज़ल

वो देख कर न रुका और गुज़र गए हम भी

शाह नवाज़ ज़ैदी

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वो देख कर न रुका और गुज़र गए हम भी
दुआ-ए-शब की तरह बे-असर गए हम भी

समाअ'तों के जज़ीरे तलक रसाई न थी
वो बे-ख़बर ही रहा बे-समर गए हम भी

यही कहेंगे कि इक ख़ौफ़ था बुलंदी का
किसी के बाम-ए-नज़र से उतर गए हम भी

मिला वो ज़ोर-ए-तसव्वुर सुबुक-इरादा हुए
मुसीबत आने से पहले ही डर गए हम भी

शनावरी पे कहीं हर्फ़ ही न आ जाए
अगर तराश के दरिया गुज़र गए हम भी

ख़ुदा भी तो कभी यकसानियत से उकताए
कमाल कौन सा होगा जो मर गए हम भी

सदा-ए-ख़्वाब तो थे ऐसे चूर चूर हुए
ग़ुबार बन के फ़ज़ा में बिखर गए हम भी