वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
कि दिल रह गया मुद्दआ कहते कहते
मिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है
तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहते
शब-ए-ग़म किस आराम से सो गए हैं
फ़साना तिरी याद का कहते कहते
ये क्या पड़ गई ख़ू-ए-दुश्नाम तुम को
मुझे ना-सज़ा बरमला कहते कहते
ख़बर उन को अब तक नहीं मर मिटे हम
दिल-ए-ज़ार का माजरा कहते कहते
अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़
बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते
वो आए मगर आए किस वक़्त 'हसरत'
कि हम चल बसे मरहबा कहते कहते
ग़ज़ल
वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
हसरत मोहानी