वो बिछड़ कर निढाल था ही नहीं
यानी उस को मलाल था ही नहीं
वो तो पाँव ही पड़ गया था मिरे
जिस सफ़र में मलाल था ही नहीं
मेरी तस्दीक़ क्या भला करता?
वो कभी मेरी ढाल था ही नहीं
सुरमई हिज्र को हरा करता
उस में ऐसा कमाल था ही नहीं
और फिर दिल ने उस को छोड़ दिया
जब तअल्लुक़ बहाल था ही नहीं
चाँद फिर हम-सफ़र बना मेरा
मेरे आगे ज़वाल था ही नहीं

ग़ज़ल
वो बिछड़ कर निढाल था ही नहीं
नाहीद विर्क