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वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ | शाही शायरी
wo bhi kuchh bhula hua tha main kuchh bhaTka hua

ग़ज़ल

वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ

इक़बाल अशहर

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वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
राख में चिंगारियाँ ढूँडी गईं ऐसा हुआ

दास्तानें ही सुनानी हैं तो फिर इतना तो हो
सुनने वाला शौक़ से ये कह उठे फिर क्या हुआ

उम्र का ढलना किसी के काम तो आया चलो
आइने की हैरतें कम हो गईं अच्छा हुआ

रात आई और फिर तारीख़ को दोहरा गई
यूँ हुआ इक ख़्वाब तो देखा मगर देखा हुआ

वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
और मैं नादान ये समझा कि वो मेरा हुआ