EN اردو
वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी | शाही शायरी
wo bhi bigDa, hui ruswai bhi

ग़ज़ल

वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी

सादुल्लाह शाह

;

वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी
जान-लेवा है शनासाई भी

दिल की जानिब जो चली ग़म की हवा
लड़खड़ाने लगी तन्हाई भी

था मुक़ाबिल जो मिरे दोस्त मिरा
मुझ को अच्छी लगी पस्पाई भी

क्यूँ उठाते हो हमीं होते हैं
हर तमाशे में तमाशाई भी

चाँदनी हाथ पे रख कर शब ने
एक सूरत मुझे दिखलाई भी

'साद' कुछ भी न बने गर तुझ से
एक सूरत है शकेबाई भी