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वो बे-गुनाही हमारी मुआफ़ करता है | शाही शायरी
wo be-gunahi hamari muaf karta hai

ग़ज़ल

वो बे-गुनाही हमारी मुआफ़ करता है

सईद शबाब

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वो बे-गुनाही हमारी मुआफ़ करता है
न फ़ैसला ही हमारे ख़िलाफ़ करता है

सजाए रखता है ख़्वाब-ओ-ख़याल की दुनिया
हक़ीक़तों का वो कब ए'तिराफ़ करता है

ये एच-पेच अगर और मगर ये तावीलें
जो साफ़-दिल हो वो बातें भी साफ़ करता है

जो अपनी रूह के असरार से नहीं वाक़िफ़
वो मेरे बारे में क्या इंकिशाफ़ करता है

जो हुक्म भी हुआ सादिर बस उस को मान लिया
'सईद' दिल से कहाँ इख़्तिलाफ़ करता है