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वो बस्तियाँ वो बाम वो दर कितनी दूर हैं | शाही शायरी
wo bastiyan wo baam wo dar kitni dur hain

ग़ज़ल

वो बस्तियाँ वो बाम वो दर कितनी दूर हैं

महताब हैदर नक़वी

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वो बस्तियाँ वो बाम वो दर कितनी दूर हैं
महताब तेरे चाँद-नगर कितनी दूर हैं

वो ख़्वाब जो ग़ुबार-ए-गुमाँ में नज़र न आए
वो ख़्वाब तुझ से दीदा-ए-तर कितनी दूर हैं

बाम-ए-ख़याल-ए-यार से उतरे तो ये खुला
हम से हमारे शाम-ओ-सहर कितनी दूर हैं

ऐ आसमान इन को जहाँ होना चाहिए
उस ख़ाक से ये ख़ाक-बसर कितनी दूर हैं

बैठे बिठाए दिल के सफ़र पर चले तो आए
लेकिन वो मेहरबान-ए-सफ़र कितनी दूर हैं

ये भी ग़ज़ल तमाम हुई शाम हो चुकी
अफ़्सून-ए-शाइरी के हुनर कितनी दूर हैं