वो बड़े बनते हैं अपने नाम से
हम बड़े बनते है अपने काम से
वो कभी आग़ाज़ कर सकते नहीं
ख़ौफ़ लगता है जिन्हें अंजाम से
इक नज़र महफ़िल में देखा था जिसे
हम तो खोए है उसी में शाम से
दोस्ती चाहत वफ़ा इस दौर में
काम रख ऐ दोस्त अपने काम से
जिन से कोई वास्ता तक है नहीं
क्यूँ वो जलते है हमारे नाम से
उस के दिल की आग ठंडी पड़ गई
मुझ को शोहरत मिल गई इल्ज़ाम से
महफ़िलों में ज़िक्र मत करना मिरा
आग लग जाती है मेरे नाम से
ग़ज़ल
वो बड़े बनते हैं अपने नाम से
सिराज फ़ैसल ख़ान