वो बदन फूल की बाहोँ में पला हो जैसे
इस क़दर नर्म कि ख़्वाबों में ढला हो जैसे
ज़िंदगी टूटते शीशों की सदा हो जैसे
ज़िंदगी काँपते होंटों की दुआ हो जैसे
इस तरह दिल में तिरी याद की ख़ुशबू आई
दश्त-ए-वीराँ में कोई फूल खिला हो जैसे
जब मुलाक़ात हुई उन से तो यूँ हँस के मिले
कोई शिकवा न शिकायत न गिला हो जैसे
ज़िंदगी दी है दिलों को मिरे गीतों ने 'शहाब'
मेरी आवाज़ हक़ाएक़ की सदा हो जैसे
ग़ज़ल
वो बदन फूल की बाहोँ में पला हो जैसे
शहाब अशरफ़