वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है
गुल-बार-ओ-ज़िया-बार फ़ज़ा मेरे लिए है
पुर-नूर हुआ जाता है हर जादा-ए-मग़ज़ल
पेशानी-ए-सीमीं की ज़िया मेरे लिए है
ता-हद्द-ए-नज़र फैल गया रंग फ़ज़ा में
ख़ुश-रंग वो तहरीर-ए-हिना मेरे लिए है
रुख़्सार-ओ-लब-ओ-गेसू-ओ-अब्रू के जहाँ में
हर गाम पे इक हश्र बपा मेरे लिए है
कुछ दर्द की शिद्दत में कमी है तो सही अब
शायद तिरे होंटों पे दुआ मेरे लिए है
गो ताब नहीं और सितम सहने की फिर भी
अहबाब की हर तर्ज़-ए-जफ़ा मेरे लिए है
मैं अब भी 'नदीम' अपने मुक़द्दर पे हूँ नाज़ाँ
वो नक़्श-ए-क़दम राह-नुमा मेरे लिए है

ग़ज़ल
वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है
राज कुमार सूरी नदीम