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वो आरिज़ गुलाबी वो गेसू घनेरे | शाही शायरी
wo aariz gulabi wo gesu ghanere

ग़ज़ल

वो आरिज़ गुलाबी वो गेसू घनेरे

सैफ़ी प्रेमी

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वो आरिज़ गुलाबी वो गेसू घनेरे
इसी सम्त हैं दीदा-ओ-दिल के फेरे

उजाले की रूदाद वो दिल लिखेगा
कि जिस दिल से पसपा हुए हैं अँधेरे

बड़ा फ़र्क़ है तेरे मेरे जहाँ में
इधर ज़ुल्मत-ए-शब उधर हैं सवेरे

किसी से कभी आप-बीती न कहना
उमड आएँगे हर तरफ़ से अँधेरे

ख़ुलूस-ए-दिल-ओ-जाँ मिरी कम-निगाही
फ़रेब-ए-मुसलसल भी एहसान तेरे

वो इक वा'दा-ए-जाम-ए-सरशार-ओ-रंगीं
वो इक शाम लेकिन हज़ारों सवेरे

हर इक फ़ित्ना-गर देख ले रंग-ए-'सैफ़ी'
इसी आशियाने में सुख के बसेरे