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वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ | शाही शायरी
wo aankhen jin se mulaqat ek bahana hua

ग़ज़ल

वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ

सलीम कौसर

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वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ
उन्हें ख़बर ही नहीं कौन कब निशाना हुआ

सितारा-ए-सहरी का भरोसा मत कीजो
नए सफ़र में ये रख़्त-ए-सफ़र पुराना हुआ

न जाने कौन सी आतिश में जल बुझे हम तुम
यहाँ तो जो भी हुआ है दरून-ए-ख़ाना हुआ

कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में
कि इस के बाद जो किरदार था फ़साना हुआ

उसी सितारे ने भटका दिया सर-ए-मंज़िल
सफ़र पे जो मिरी तहवील में रवाना हुआ

सुना है तुझ को तो हम याद भी नहीं आते
ये इम्तिहाँ तो नहीं ये तो आज़माना हुआ

हमें तो इश्क़ मुक़द्दर है जैसे रिज़्क़ 'सलीम'
सो चल पड़ेंगे जहाँ अपना आब-ओ-दाना हुआ