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वो आज मुझ से जब मिली तो धुँद छट गई | शाही शायरी
wo aaj mujhse jab mili to dhund chhaT gai

ग़ज़ल

वो आज मुझ से जब मिली तो धुँद छट गई

सुलतान सुबहानी

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वो आज मुझ से जब मिली तो धुँद छट गई
मगर न जाने क्या हुआ ज़मीं ही फट गई

वो लम्हा एक चाँद था महकती रात का
वो चाँद बुझ सका न था कि रात कट गई

बयाज़-ए-दर्द जब खुली तो दिल हँसा मगर
गुज़िश्ता अहद की हवा वरक़ उलट गई

हमारा ऐसा दौर भी रहा कि हर गली
जिधर से हम गुज़र गए सिमट सिमट गई

तमाम ख़ुश्क जिस्म सब्ज़ सब्ज़ हो गया
वो एक प्यासी बेल मुझ से जब लिपट गई

ख़याल उस का आया तो ख़िज़ाँ की शाम क्या
कभी कभी तो उम्र की नदी पलट गई