वो आज लौट भी आए तो इस से क्या होगा
अब उस निगाह का पत्थर से सामना होगा
ज़मीं के ज़ख़्म समुंदर तो भर न पाएगा
ये काम दीदा-ए-तर तुझ को सौंपना होगा
हज़ार नेज़े उधर और मैं इधर तन्हा
मिरी शिकस्त का उनवाँ ही दूसरा होगा
जो तेज़ धूप में सायों की फ़स्ल बोते हैं
यहाँ की आब ओ हवा का उन्हें पता होगा
मैं और एक क़दम उस की सम्त बढ़ जाता
पता न था कि वो इतना गुरेज़-पा होगा
मिरा यक़ीं है कि राह-ए-वफ़ा में मेरे ब'अद
मिरा सफ़र तिरे क़दमों ने तय किया होगा
ग़ज़ल
वो आज लौट भी आए तो इस से क्या होगा
कैफ़ी विजदानी