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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है | शाही शायरी
wo aadmi nahin hai mukammal bayan hai

ग़ज़ल

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है

दुष्यंत कुमार

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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है

वो कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तुगू
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है

सामान कुछ नहीं है फटे-हाल है मगर
झोले में उस के पास कोई संविधान है

उस सर-फिरे को यूँ नहीं बहला सकेंगे आप
वो आदमी नया है मगर सावधान है

फिस्ले जो उस जगह तो लुढ़कते चले गए
हम को पता नहीं था कि इतनी ढलान है

देखे हैं हम ने दौर कई अब ख़बर नहीं
पावँ तले ज़मीन है या आसमान है

वो आदमी मिला था मुझे उस की बात से
ऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है