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विज्दान में वो आया इल्हाम हुआ मुझ को | शाही शायरी
wijdan mein wo aaya ilham hua mujhko

ग़ज़ल

विज्दान में वो आया इल्हाम हुआ मुझ को

शुजा ख़ावर

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विज्दान में वो आया इल्हाम हुआ मुझ को
मैं भूल गया उस को वो भूल गया मुझ को

अब डूब ही जाने दे इतना न गिरा मुझ को
शर्मिंदा न कर डाले तिनके की अना मुझ को

मैं गुम-शुदा लोगों की फ़ेहरिस्त में दब जाता
वो तो मिरे दुश्मन ने पहचान लिया मुझ को

इस अहद में क्या रक्खा था जिस पे बसर होती
क्या होता जो विर्से में मिलता न ख़ुदा मुझ को

इतनी बड़ी दुनिया में कब से मैं अकेला हूँ
ऐ रब्ब-ए-करीम अपने बंदों से मिला मुझ को