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वस्ल उस से न हो विसाल तो हो | शाही शायरी
wasl us se na ho visal to ho

ग़ज़ल

वस्ल उस से न हो विसाल तो हो

रौनक़ टोंकवी

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वस्ल उस से न हो विसाल तो हो
कहीं क़िस्से को इंफ़िआल तो हो

न सही लुत्फ़ कुछ इताब सही
उस के दिल में मिरा ख़याल तो हो

क्यूँ न तुझ को हिना से हो रग़बत
यूँ कोई और पाएमाल तो हो

मस्लहत है तपीदगी दिल की
मगर उन को इधर ख़याल तो हो

क़ौल अपना यही है ऐ 'रौनक़'
कोई फ़न हो मगर कमाल तो हो