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वस्ल से तब भरे हमारा पेट | शाही शायरी
wasl se tab bhare hamara peT

ग़ज़ल

वस्ल से तब भरे हमारा पेट

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

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वस्ल से तब भरे हमारा पेट
पेट से जब मिले तुम्हारा पेट

थक गए हम तो भरते भरते इसे
खाते खाते कभी न हारा पेट

साफ़ दरिया-ए-हुस्न का है पाट
कैसा दिलचस्प है तुम्हारा पेट

नाफ़ तेरी है यार नाफ़ा-ए-मुश्क
और फ़ज़ा-ए-ख़ुतन है सारा पेट

हुआ नज़्ज़ारा-ए-शिकम न नसीब
'सेहर' हर-चंद हम ने मारा पेट