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वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए | शाही शायरी
wasl ki shab mein bhi hum baham digar roya kiye

ग़ज़ल

वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए

करिमुद्दीन सनअत मुरादाबादी

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वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए
मैं जुदाई से वो मेरे हाल पर रोया किए

उस ने ज़ानू ग़ैर का अपने रखा जब ज़ेर-ए-सर
अपने ज़ानू पर हम अपना रख के सर रोया किए

उस ने आँसू ग़ैर के पोंछे जब अपने हाथ से
हम-नशीं ये माजरा हम देख कर रोया किए

हो गया मुश्किल मिरी मिज़्गाँ से मिज़्गाँ का मिलाप
हाइल इक दरिया हुआ हम इस क़दर रोया किए

सुर्ख़-रू बे-आबरूई में भी हम 'सनअ'त' रहे
ख़ुश्क जब आँसू हुए लख़्त-ए-जिगर रोया किए