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वस्ल की शब भी अदा-ए-रस्म-ए-हिरमाँ में रहा | शाही शायरी
wasl ki shab bhi ada-e-rasm-e-hirman mein raha

ग़ज़ल

वस्ल की शब भी अदा-ए-रस्म-ए-हिरमाँ में रहा

अमीरुल्लाह तस्लीम

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वस्ल की शब भी अदा-ए-रस्म-ए-हिरमाँ में रहा
सुब्ह तक मैं इल्तिमास-ए-शौक़-ए-पिन्हाँ में रहा

मर गए लाखों शहीद-ए-नाज़ कुछ पर्वा नहीं
वो तमाशा-ए-हिलाल-ए-ईद-ए-क़ुर्बां में रहा

काम अपना कर चुकी बीमारी-ए-इश्क़-ए-बुताँ
मैं फ़रेब-ए-नुस्ख़ा-ओ-तासीर-ए-दरमाँ में रहा

वाह रे पास-ए-वफ़ा अल्लाह री शर्म-ए-आरज़ू
हर नफ़स हमराही-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ में रहा

क्या पढ़े अशआ'र 'तस्लीम'-ए-जिगर-अफ़्गार ने
शोर-ए-तहसीं हर तरफ़ बज़्म-ए-सुख़न-दाँ में रहा