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वरक़ है मेरे सहीफ़े का आसमाँ क्या है | शाही शायरी
waraq hai mere sahife ka aasman kya hai

ग़ज़ल

वरक़ है मेरे सहीफ़े का आसमाँ क्या है

अली अब्बास उम्मीद

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वरक़ है मेरे सहीफ़े का आसमाँ क्या है
रहा ये चाँद तो शायद तुम्हारा चेहरा है

जो पूछता था मिरी उम्र उस से कह देना
किसी के प्यार के मौसम का एक झोंका है

सिमट गया था अंधेरों को देख कर लेकिन
सहर के साथ मिरे रास्ते में बिखरा है

जिसे बचाता रहा था मैं आबरू की तरह
वो लम्हा आज मिरी मुट्ठियों से फिसला है

फ़ज़ा की शाख़ पे लफ़्ज़ों के फूल खिलने दो
जिसे सुकूत समझते हो ज़र्द पत्ता है

अभी तो मेरे गरेबाँ में है तिरी ख़ुशबू
तिरे बदन पे अभी मेरा नाम लिक्खा है

हर एक शख़्स को उम्मीद बस उसी से है
हमारे शहर में वो एक ही तो रुस्वा है