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वक़्त मजबूर अपनी आदत से | शाही शायरी
waqt majbur apni aadat se

ग़ज़ल

वक़्त मजबूर अपनी आदत से

मोनिका शर्मा सारथी

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वक़्त मजबूर अपनी आदत से
बदले लम्हों को अपनी चाहत से

कब रहा शौक़ जीतने का हमें
हारते ही रहे हैं क़िस्मत से

उस की ही बे-रुख़ी का है अंजाम
हम हुए दूर उस की उल्फ़त से

दर्द ग़म रंज आहें ख़ामोशी
और पाया है क्या मोहब्बत से

उस ने कर ली ही ख़ुद-कुशी आख़िर
था परेशाँ वो अपनी ग़ुर्बत से

दो निगाहों से दाँव खेला फिर
ले गए दिल को वो शरारत से

हम को बनना ज़माने के जैसा
आ गए तंग हम शराफ़त से

'सारथी' तू भी अब बदल ख़ुद को
सीख कुछ तो बदलती क़ुदरत से