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वक़्त की नाकामियाँ हैं और क्या | शाही शायरी
waqt ki nakaamiyan hain aur kya

ग़ज़ल

वक़्त की नाकामियाँ हैं और क्या

मोनिका सिंह

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वक़्त की नाकामियाँ हैं और क्या
फ़ासले अब दरमियाँ है और क्या

पूछता हासिल ज़माना इश्क़ का
चाहतों में दूरियाँ हैं और क्या

क्यूँ सभी में ढूँडते हो ख़ूबियाँ
ख़ूबसूरत ख़ामियाँ हैं और क्या

सामने देखा न पीछे रो दिए
ऐसी भी मजबूरियाँ हैं और क्या

तिश्नगी-ए-इ'श्क़ हो बे-इंतिहा
झूट सब दुश्वारियाँ हैं और क्या

जान कर अंजान सा हो बैठना
इस में ही आसानियाँ हैं और क्या

अब तो उस के भी न अपने ही रहे
उम्र-भर ख़ामोशियाँ हैं और क्या