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वक़्त के कितने ही रंगों से गुज़रना है अभी | शाही शायरी
waqt ke kitne hi rangon se guzarna hai abhi

ग़ज़ल

वक़्त के कितने ही रंगों से गुज़रना है अभी

महमूद शाम

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वक़्त के कितने ही रंगों से गुज़रना है अभी
ज़िंदगी है तो कई तरह से मरना है अभी

कट गया दिन का दहकता हुआ सहरा भी तो क्या
रात के गहरे समुंदर में उतरना है अभी

ज़ेहन के रेज़े तो फैले हैं फ़ज़ा में हर-सू
जिस्म को टूट के हर गाम बिखरना है अभी

कौन है जिस के लिए अब भी धड़कता है दिल
किस को इस उजड़े जज़ीरे में ठहरना है अभी

एक इक रंग उड़ा ले गई बे-मेहर हुआ
कितने ख़ाके हैं जिन्हें 'शाम'-जी भरना है अभी